Bollywood ke Remake Trend – क्या नया खत्म हो रहा है?


क्या बॉलीवुड में नयापन खत्म हो गया है?

हर महीने कोई न कोई नई फिल्म आती है।
लेकिन… क्या वो वाकई नई होती है?

Bollywood ke remake trend ने ये सवाल उठाना ज़रूरी कर दिया है।

चलिए इस ट्रेंड की परतें खोलते हैं।


पुरानी फिल्मों के नए वर्ज़न की तुलना

आजकल ज़्यादातर फिल्में सुनते ही déjà vu जैसा लगता है।
क्यों?
क्योंकि हमने वही कहानी पहले भी देखी होती है — शायद 90s में, या शायद 70s में।

कुछ हालिया उदाहरण देखें:

  • Coolie No.1 (2020) vs Coolie No.1 (1995)
    नॉस्टेल्जिया में डूबी कॉमेडी, लेकिन नई फिल्म में वही चुटकुले दोहराए गए।
    दर्शकों को मज़ा कम, cringe ज़्यादा मिला।
  • Sharmaji Namkeen (2022) vs Bawarchi (1972)
    दोनों फिल्मों में घरेलू नौकर और परिवार की कहानी।
    लेकिन Bawarchi की सादगी Sharmaji की स्टाइलिश पेशकश में कहीं खो गई।
  • Don (2006) vs Don (1978)
    यह एक सफल रीमेक था, क्योंकि उसमें नई टेक्नोलॉजी, नया ट्विस्ट और स्टाइलिश प्रेजेंटेशन था।
    लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता।

सवाल यही है — क्या रीमेक हमेशा बुरा होता है? नहीं।
लेकिन सिर्फ पुराने गाने और चेहरों से नई फिल्म नहीं बनती।


क्या ओरिजिनल आइडियाज़ की कमी है?

ये एक बड़ा सवाल है।

Bollywood ke remake trend कहीं ये तो नहीं कह रहा कि इंडस्ट्री को अब नए आइडियाज़ पर भरोसा नहीं?

OTT प्लेटफॉर्म्स ने ये साबित कर दिया है कि लोग नयी कहानियां, नये कैरेक्टर्स, और अलग सोच को पसंद करते हैं।

Scam 1992, Paatal Lok, Delhi Crime जैसी वेब सीरीज़ ने दिखा दिया कि content is king.

तो फिर बड़ी स्क्रीन पर क्यों इतना डर है नया करने का?


रीमेक का साइकोलॉजी: Nostalgia या Shortcut?

रीमेक बनाना आसान होता है।

  • स्क्रिप्ट तैयार
  • कैरेक्टर्स जाने-पहचाने
  • ऑडियंस को कनेक्शन पहले से

लेकिन क्या ये शॉर्टकट सही है?

नॉस्टेल्जिया एक भावना है, लेकिन कंटेंट एक ज़रूरत।
लोग पुरानी यादें ज़रूर देखना चाहते हैं, पर साथ में कुछ नया भी चाहिए।


क्या बदलने की ज़रूरत है?

  1. रीमेक में नया एंगल दो
    जैसे Devdas (2002) ने 1955 की फिल्म से ज़्यादा गहराई और स्टाइल जोड़ी।
  2. ऑडियंस की इंटेलिजेंस पर भरोसा करो
    आज के दर्शक इंटरनेट, ओटीटी, और वर्ल्ड सिनेमा से अपडेटेड हैं।
    उन्हें वही पुरानी चीज़ें नहीं चाहिए।
  3. नए राइटर्स को मौका दो
    कहानी वही है, लेकिन ज़ुबान और नजरिया बदलना चाहिए।

आखिर में – क्या Bollywood ke remake trend एक खतरा है?

Yes – अगर ये नया सोचने की क्षमता को खत्म कर दे।
No – अगर इसमें नए तरीके और नजरिए से कहानियां दिखाई जाएं।

तो अगली बार जब कोई नई फिल्म आए और आप सोचें “ये तो पहले देखी है”…
तो सोचिए — क्या वाकई फिल्ममेकर ने कुछ नया कहा?

या बस पुरानी यादों का कॉपी-पेस्ट किया?


आपका क्या सोचना है?
नीचे कमेंट में बताइए – क्या रीमेक पसंद आते हैं या आपको ओरिजिनल कहानियों का इंतज़ार है?